मेरी तुसाद (१ दिसंबर, १७६१ - १६ अप्रैल, १८५०) एकफ्रांसीसी कलाकार थी। वे उनके द्वारा बनाए गए मोम के आदमकद पुतलों के लिए विख्यात हैं। उन्होने लन्दन मे मैडम तुसाद संग्राहलय की स्थापना की।
जीवन
संपादित करेंमेरी गोज़ोल्स तुसाद
का स्ट्रासबर्ग में हुआ था। उसके पिता एक सिपाही थे जो उसके जन्म के दो महीने पहले मशहूरसेवन डेज वार में मारे गए थे। उसके पिता के देहांत के बाद उसकी माँ ने डॉ॰ फिलिप कर्टियस (Dr. Philippe Curtius) जो कि एक मशहूर चिकित्सक थे, के घर काम करना शुरू किया। डॉ॰ कर्टियस को मोम की मुर्तियाँ बनाने में महारत हासिल थी। उस समय के चिकित्सा केंद्रों में मानव अंगों के अध्ययन के लिए मोम की प्रति-कृतियों का प्रयोग किया जाता था, तथा इस प्रकार के मोम निर्मित अंगों की भारी मांग थी। इसके अलावा मोम की मूर्तियों की मांग स्थानीय चर्च तथा ऊँचे तबके के लोगों में भी थी, जो अपने शारीरिक विकार को मोम के अंगों से
कुछ समय पश्चात किसी मित्र के कहने पर डॉ॰ कर्टियस ने अमीर लोगों के लिए संपूर्ण आदम कद मुर्तियाँ बनानी शुरू की। उन्होने अपनी मुर्तियों को सलोन डे सायर के नाम से प्रदर्शित करना शुरू किया, जिसको लोगों ने हाथों हाथ लिया।
डॉ॰ कर्टियस ने अपनी कर्मचारी श्रीमती गोज़ोल्स की बेटी मेरी गोज़ोल्स को भी यही विधा सिखाने का निश्चय किया। मेरी को भी मोम द्वारा शिल्प निर्माण में विशेष रूचि थी। धीरे धीरे मेरी ने इस विधा में हुनर हासिल की और इस तरह से डॉ॰ कर्टियस को एक बेहतर उत्तराधिकारी मिल गया, जो उनके जाने के बाद भी इस विधा को और भी ऊँचाइयों पर ले जाने वाला था।
मेरी ने अपना सबसे पहला पोट्रेट फ्रेंकोइस मेरे अरोटॅ नामक अति धनाढ्य व्यक्ति का बनाया। इसके अलावा उसनेबेंजामिन फ्रेंकलिन का भी पोट्रेट बनाया था।
डॉ॰ कर्टियस की लोकप्रियता एवं सम्पर्कों की वजह से फ्रांस के राजमहल के साथ उनके मधुर सम्बन्ध थे। इसका फायदा मेरी गोज़ोल्स को भी मिला और उसे लुई सोलहवें की बहन का निजी शिक्षक नियुक्त किया गया। मेरी गोज़ोल्स का काम राजघराने की बेटी को मुर्तिकला में पारंगत करना था। राजघराने से निकटता तथा लुई सोलवहें के साथ उसके अच्छे संम्बधों की वजह से ही मेरी गोज़ोल्स को भी फ्रांस क्रांति के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था। पर मोम मुर्तिकला की जानकारी ने उसके प्राणों की रक्षा कर ली थी।
सन 1794 में डॉ॰ कर्टियस का देहांत हुआ। डॉ॰ कर्टियस ने जाने से पहले अपना सारा कार्य तथा संग्रह मेरी के नाम कर दिया था।
सन 1795 में मेरी ने एक इंजिनियर फ्रेंकोइस तुसाद से विवाह किया और इस तरह मेरी गोज़ोल्स, मेडम मेरी तुसाड के नाम से जानी जाने लगी।
उनका विवाह आठ साल चला और उनके दो पुत्र हुए। मेरी की महत्वाकांक्षा और सफलता की चाह ने उसे अपने पति से अलग किया। मेरी अपने एक पुत्र के साथ फ्रांस छोड़करब्रिटेन आ गई। ब्रिटेन में शुरूआती दिनों में मेरी विभिन्न शहरों के चक्कर लगाती रहीं और अपने कार्यों की प्रदर्शनी लगाती रही।
सन 1835 में लन्दन की बेकर स्ट्रीट में मैडम तुसाद ने पहली बार अपना स्थायी स्टुडियो खोला। इस स्टुडियो अथवा संग्रहालय का मुख्य आकर्षण था, चेम्बर ऑफ होरर जिसमें फ्रेंच क्रांति के दौरान मारे गए लोगों की मुर्तियों के अलावा अन्य कई नामी-गिरामी अपराधीयों की कृतियाँ प्रदर्शित की जाती थी।
सन 1884 में मैडम तुसाद संग्रहालय का स्थान परिवर्तन हुआ और वह मेरिलबोन रोड पर खोला गया, जहाँ वह आज भी विद्यमान है।
मैडम तुसाद ने सन 1842 में अपना खुद का पोट्रेट बनाया जो आज लन्दन के मैडम तुसाद संग्रहालय के मुख्य द्वार पर आगतुकों का स्वागत करता है।
मैडम तुसाद का निधन सन 1850 में हुआ था। अपनी 88 वर्ष की दिर्घायु में मेडम तुसाड ने अनेक चुनोतीयों का डटकर मुकाबला किया। उन्होने अपने जीवन में वो स्थान हासिल किया जो बहुत कम लोग कर पाते हैं
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